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(अतरौलिया) आजमगढ़ । नगर पंचायत अतरौलिया के अधिशासी अधिकारी डॉ0 लव कुमार मिश्र व नगर अध्यक्ष सुभाष चंद्र जायसवाल के संयुक्त नेतृत्व में काकोरी शताब्दी एक्शन वर्षगांठ पर शीलाफलकम पर पुष्पांजलि अर्पित की गई । और शहीदों को नमन किया गया। डॉक्टर लव कुमार मिश्र ने कहा कि राजकीय बालिका इंटर कॉलेज परिसर में थींम एक वृक्ष मां के नाम के अंतर्गत वृक्षारोपण किया गया। इसके बाद विद्यालय परिसर से प्रचार वाहन जनसंदेश के माध्यम से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। प्रचार वाहन में लगे ऑडियो के माध्यम से समूचे नगर पंचायत में भ्रमण कर राष्ट्रभक्ति गीत के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाएगा। बता दे कि काकोरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के लखनऊ ज़िले में स्थित एक नगर और नगर पंचायत है। यह जगह भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान क्रान्तिकारी काकोरी काण्ड के लिए जानी जाती है। यहाँ पर काकोरी शहीदों की स्मृति में एक स्मारक भी है । 8 अगस्त को राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के घर पर हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में निर्णय कर योजना बनी और अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को हरदोई शहर के रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग, जिनमें शाहजहाँपुर से बिस्मिल के अतिरिक्त अशफाक उल्ला खाँ, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल, बंगाल से राजेन्द्र लाहिडी, शचीन्द्रनाथ बख्शी रहे। इस डकैती कार्यवाही को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खान, राजेंद्र लाहिड़ी, केशव चक्रवर्ती, मुकुंदी लाल, बनवारी लाल सहित 10 क्रांतिकारियों ने अंजाम दिया था। लखनऊ सहारनपुर लखनऊ ट्रेन को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह ने नौ अगस्त 1925 की रात को लूटकर अंग्रेजी हुकूमत पर बड़ी चोट की थी। हुकूमत के खजाने को लूटने की यह घटना काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में होने की वजह से इसका नाम काकोरी कांड दिया गया। काकोरी कांड ने ब्रिटिश हुकूमत को इस कदर हिला दिया था कि क्रांतिकारियों को पकड़ने लिए उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, 4600 रुपए की लूट करने वाले इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए करीब 10 लाख रुपये खर्च किए थे। क्रांतिकारियों पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छोड़, सरकारी खजाना लूटने और हत्या करने का केस चलाया गया। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि सूर्य सेन काकोरी मामले से जुड़े नहीं थे। रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर में, अशफाकउल्ला खान को फैजाबाद में, राजिंद्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा में, और रोशन सिंह को इलाहाबाद में फांसी दी गई थी।